Mangalvar vrat vidhi – मंगलवार व्रत विधि – हनुमान जी का पूजन
मंगल के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए और मंगल को बलि बनाने के लिए मंगलवार का व्रत विधि (Mangalvar vrat vidhi )पूर्वक करना बहोत फलदायक है.
इस व्रत को करने से ऋण का निवारण एवं आर्थिक समस्या का समाधान होताहै. यह व्रत संतति सौख्यप्रदायक एवं आत्म शक्ति तत्त्व का सूचक भी है. इस व्रत को निम्न तरीके से पूर्ण श्रद्धा के साथ करे.
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मंगलवार व्रत विधि – Mangalvar vrat vidhi
मंगलवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ करे और 21 या 45 मंगलवार तक करे. मंगलवार के दिन प्रात: स्नान आदि करके हनुमान जी के मंदिर में जाकर दर्शन और तेल का दीपक करे. तथा लाल पुष्प की माला और श्री फल अर्पण करे. एवं “ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:” इस बिज मंत्र का यथा शक्ति जाप करे.
भोजन में गेहू के आटे, गुड और घी से हलवा बनाये. भोजन से पूर्व हलवा का कुछ भाग बैल-पशु को देकर भोजन करे. भोजन में प्रथम ७ ग्रास हलवा ग्रहण करे फिर अन्य पदार्थ ग्रहण करे. भोजन में नमक का प्रयोग न करे.
अंतिम मंगलवार को हवन क्रिया के पश्चात बालक-विद्यार्थी को मोदक लड्डू या हलवा सहित भोजन कराकर दक्षिणा स्वरूप लाल वस्त्र, ताम्रपत्र, गुड,नारियल आदि प्रदान करे.
* व्रत कब नष्ट नहीं होता है : व्रत के दिन जल, सभी प्रकार के फल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ या औषध सेवन करने से व्रत नष्ट नहीं होता है.
* व्रत कब नष्ट होता है : व्रत के दिन एक बार भी पान खाने से, दिन के समय सोने से, स्त्री रतिप्रसंग आदि से व्रत नष्ट होता है.
हनुमान जी की आरती – Hanuman ji ki aarti
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस किए रघुराई। तुलसीदास स्वामी आरती गाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥
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