RELIGION- धर्म

Vat Savitri Vrat Katha – वट सावित्री व्रत कथा

ऐसे करें वट सावित्री व्रत और पूजन
सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। 
यह व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वह वट के समीप जाकर जल का आचमन लेकर कहे-ज्येष्ठ मात्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी अमुक वार में मेरे पुत्र और पति की आरोग्यता के लिए एव जन्म-जन्मान्तर में भी मैं विधवा न होऊं इसलिए सावित्री का व्रत करती हूं। 
वट के मूल में ब्रह्म, मध्य में जर्नादन, अग्रभाग में शिव और समग्र में सावित्री है। 
हे वट! अमृत के समान जल से मैं तुमको सींचती हूं। ऐसा कहकर भक्तिपूर्व एक सूत के डोर से वट को बांधे और गंध, पुष्प तथा अक्षत से पूजन करके वट एवं सावित्री को नमस्कार कर प्रदक्षिणा करे|


वट सावित्री व्रत कथा –


प्राचीनकाल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय थे। 
राजा को सब प्रकार का सुख था, किन्तु कोई सन्तान नहीं थी। इसलिये उन्होंने सन्तान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक पत्नि सहित सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन कठोर तपस्या की। सर्वगुण देवी सावित्री ने प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में अश्वपति के घर जन्म लेने का वर दिया। 
यथासमय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक परम तेजस्विनी सुन्दर कन्या ने जन्म लिया। 
राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। राजकन्या शुक्ल पक्षके चन्द्रमा की भाँति दिनों-दिन बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया। उसके रूप-लावण्य को जो भी देखता उसपर मोहित हो जाता।
कन्या के युवा होने पर अश्वपति ने सावित्री के विवाह का विचार किया । राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला। उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम विवाह के योग्य हो गयी हो, इसलिये स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’ 
पिताकी आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मन्त्रियों के साथ स्वर्ण-रथपर बैठकर यात्रा के लिये निकली। कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थोंमें भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आयी। 
उसने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देखकर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया। महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसी यात्रा का समाचार पूछा सावित्री ने कहा—पिताजी ! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् सर्वथा मेरे योग्य हैं। अतः सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें मैंने पति रूप में वरण कर लिया है | ’ 
नारद जी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहो की गणना कर राजा अश्वति से बोले—‘राजन ! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान् के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिये गये हैं, वे वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अन्धे हो चुके हैं। 
सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान् की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है। और सावित्री के बारह वर्ष की आयु होने पर सत्यवान कि मृत्यु हो जायेगी ।’
नारदजी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गये। उन्होंने सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’ 
सावित्री सती थी। उसने दृढ़ता से कहा—‘पिताजी ! आर्य कन्या होने के नाते जब मै सत्यवान का वरण कर चुकी हूँ तो अब सत्यवान् चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति बनेगें। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुषका वरण कैसे कर सकती हूँ ?’
सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान् से कर दिया।सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञातकर लिया तथा अपने श्वसुर परिवार के साथ जंगल मे रहने लगी । धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुँचा, जिसमें सत्यवान् की मृत्यु निश्चित थी। 
सावित्री ने नादरजी द्वारा बताय हुये दिन से तीन दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था। नारद द्वारा निश्चित तिथि को पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने के लिये गयी। 
सत्यवान वन में पहुँचकर लकडी काटने के लिए बड के पेड पर चढा । अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान् के सिर में भंयकर पीडा होने लगी और वह पेड़ से नीचे उतरा। 
सावित्री ने उसे बड के पेड के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया (कही-कही ऐसा भी उल्लेख मिलता हैं कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था) । 
उसी समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखायी पड़ा। वे साक्षात् यमराज थे। यमराज ने ब्रम्हा के विधान के रूप रेखा सावित्री के सामने स्पष्ट की और सावित्री से कहा—‘तू पतिव्रता है। 
तेरे पति की आयु समाप्त हो गयी है। मैं इसे लेने आया हूँ।’ इतना कहकर देखते ही देखते यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीवन को निकाला और सत्यवान के प्राणो को लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। सावित्री भी सत्यावान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे पीछे चल दी । पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया । 
इस पर वह बोली महराज जहा पति वही पत्नि । यही धर्म है, यही मर्यादा है । सावित्री की बुद्धिमत्ता पूर्ण और धर्मयुक्त बाते सुनकर यमराज का हृदय पिघल गया। सावित्री के धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणो से अतिरिक्त कुछ भी माँग लो । 
सावित्री ने यमराज से सास-श्वसुर के आँखो ज्योती और दीर्घायु माँगी । यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ गए सावित्री भी यमराज का पीछा करते हुये रही । 
यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापिस लौटे जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन के कोई सार्थकता नही । 
यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान माँगने के लिये कहा इस बार उसने अपने श्वसुर का राज्य वापिस दिलाने की प्रार्थना की । 
तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिए सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही इस बार सावित्री ने सौ पुत्रो का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं पुत्रो का वरदान दिया है पर पति के बिना मैं माँ किस प्रकार बन सकती हूँ, अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए। सावित्री की धर्मनिष्ठा,ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणो को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया ।
सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान का मृत शरीर रखा था । सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा । 
प्रसन्नचित सावित्री अपने सास-श्वसुर के पास पहुँची तो उन्हे नेत्र ज्योती प्राप्त हो गई इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हे मिल गया आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रो की माता बनी ।
इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर न केवल अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया बल्कि पतिव्रत धर्म से प्रसन्न कर यमराज से सावित्री ने अपने सास-ससुर की आँखें अच्छी होने के साथ राज्यप्राप्त का वर, पिता को पुत्र-प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्रवती होने के आशीर्वाद भी ले लिया। तथा इस प्रकार चारो दिशाएँ सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूँज उठी ।

Spread the love
rajvasisth

Recent Posts

शेर और बूढी औरत – हिंदी कहानी -LION AND OLD WOMAN

शेर और बूढी औरत - हिंदी कहानी  - LION AND OLD WOMAN - HINDI STORY एक बार की बात है,…

1 year ago

Durga Saptashati Path In Hindi- श्रीदुर्गासप्तशती

नवरात्रि में हम दुर्गा माँ की पूजा आराधना करते है और विधिवत माँ का पूजन करते हैं। जिसके लिए श्री…

2 years ago

Durga Saptashati Path- श्रीदुर्गासप्तशती

नवरात्रि में हम माता की पूजा आराधना करते है और विधिवत माँ का पूजन करते हैं। जिसके लिए श्री दुर्गा…

2 years ago

Maruti Suzuki Grand Vitara – New SUV 2022

Maruti Suzuki Grand Vitara 2022 को सितंबर के आखिरी हफ्ते में लॉन्च किए जाने की खबर है। ग्रैंड विटारा को…

2 years ago

MARUTI ALTO K10 4 लाख से भी कम कीमत में लांच हुई

पेश है Maruti Suzuki Alto K10 इंडिया लॉन्च जैसा की आप सबको पता है की MARUTI ALTO K10 अब अपने…

2 years ago

JANMASHTAMI WISHES & PHOTO – जन्माष्टमी की बधाई

Krishan Janmashtami birth of loard krishna, janmashtami wishes & photo , shayari , quotes, greetings ,जन्माष्टमी के बधाई संदेश और…

4 years ago