RELIGION- धर्म

Shanivar vrat katha – शनिवार व्रत कथा

Shani Dev

Shanivar vrat katha , शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं

तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं।

शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं

जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता।


शनिवार व्रत कथा – Shanivar vrat katha


शनि , भगवान सूर्य तथा छाया के पुत्र हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है,

वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है।

ब्रह्मपुराण के अनुसार, बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे।

बड़े होने पर इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से किया गया।

इनकी पत्नि सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थीं।

एक बार पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से वे इनके पास पहुचीं पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे।

इन्हें बाह्य जगत की कोई सुधि ही नहीं थी।पत्नि प्रतिक्षा कर थक गयीं

तब क्रोधित हो उसने इन्हें शाप दे दिया कि आज से तुम जिसे देखोगे वह नष्ट हो जाएगा।

ध्यान टूटने पर जब शनिदेव ने उसे मनाया और समझाया तो पत्नि को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ,

किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें ना थी।

तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसीका अनिष्ट हो।
शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं।

इनका वर्ण इन्द्रनीलमणी के समान है। वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है।

ये अपने हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल तथा वरमुद्रा धारण करते हैं।

यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है।

इनका सामान्य मंत्र है “ऊँ शं शनैश्चराय नम:”इसका श्रद्धानुसार रोज एक निश्चित संख्या में जाप करना चाहिए।


शनिवार व्रत की विधि


शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं

परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है ।

इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए। 


शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए।

शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो

उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए।

इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।


शनिश्वर के भक्तों को संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए।

शनि देव का आशीर्वाद लेने के पश्चात आपको प्रसाद स्वरूप खिचड़ी खाना चाहिए। 


सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काले चींटियों को गुड़ एवं आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए।

अगर आपके पास समय की उपलब्धता हो तो शनिवार के दिन 108 तुलसी के पत्तों पर श्री राम चन्द्र जी का नाम लिखकर,

पत्तों को सूत्र में पिड़ोएं और माला बनाकर श्री हरि विष्णु के गले में डालें। 


जिन पर शनि का कोप चल रहा हो वह भी इस मालार्पण के प्रभाव से कोप से मुक्त हो सकते हैं।

इस प्रकार भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से शनि का कोप शांत होता है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।


शनि की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि है ।शनि अच्छे कर्मो के फलदाता भी है।शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है।


शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के उपायजीवन के अच्छे समय में शनिदेव का गुणगान करो।आपतकाल में शनिदेव के दर्शन करो।

मुश्किल पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो।

दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास करो।जीवन के हर पल शनिदेव की प्रति कृतज्ञता प्रकट करो।


आरती


जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी । सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी । 

नीलाम्बर धार नाथ गज की अस्वारी ।।जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी । मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी ।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।।जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरन नर नारी । विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।

shanivar vrat katha , शनिवार व्रत कथा

Somvar vrat katha

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