भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत (Rishi Panchami Vrat Katha) किया जाता हैं !
यह व्रत ज्ञात अज्ञात पापों के शमन के लिए किया जाता हैं ! इस व्रत में सात ऋषियों के सहित देवी अरुन्धती का पूजन होता है ! इसीलिए इसे ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है !
इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह प्रातः काल से मध्यान्ह के समय किसी नदी या तालाब पर जाए !
वहां अपमार्गा (चीड़चिड़ा ) के दातून करे ! मिट्टी लगाकर स्नान करे !
इसके बाद पंचगव्य ( दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र, ) ले ! तत्पश्चात घर आकर शास्त्र और विधान से किसी ब्राहमण से पूजन आदि कराकर कथा सुने !
इस वर्त में नमक खाना वर्जित हैं!इस दिन प्रायः लोग दही और साठी का चावल खाते हैं ! खेत से जुते हुए अन्न का सेवन भी वर्जित हैं!
दिन में एक बार ही भोजन का विधान हैं !कलश आदि पूजन सामग्री को ब्राह्मण भोजन कराकर प्रसाद पाना चाहिए !
सप्त ऋषि१ – कश्यपाय नमः२ – अत्रये नमः३ – भारद्वाजाय नमः४ – विश्वामित्राय नमः५ – गौतमाय नमः६ – जम्दग्नये नमः७ – वाशिष्ठाये नमः
अंत में अरुन्धत्ये नमः करके पूजन संपन्न करना चाहिए !
राजा सिताश्व ने ब्रह्मा जी से पूछा – हे देव देवेश मैंने आपके मुख से बहुत से व्रत सुने ! अब मेरे मन में किसी एक पाप विनाशक वर्त के बारे में जानने की अभिलाषा हैं !
कृपा करके आप उस व्रत को कहे ! ब्रह्मा जी ने कहा – राजन में उस व्रत को कहता हूँ जो समस्त पापों का विनाशक हैं ! राजन उस व्रत का नाम ऋषि पंचमी व्रत हैं !
इसी प्रसंग में महात्मा लोग पुरानी बात कहा करते हैं कि विदर्भ देश की राजधानी में उत्तंग नामक एक ब्राहमण रहता था !
उसकी सुशीला नाम की भार्या ( पत्नी ) थी वह पति सेवा में पारायण थी ! सुशीला के गर्भ से दो संताने उत्पन्न हुई एक पुत्र और दूसरी पुत्री थी !
पुत्र सर्वगुण संपन्न था, उसने वेड धर्म आदि का अच्छा अध्ययन किया था ! उत्तंग ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अच्छे कुल में कर दिया !
पर हे राजन प्रारब्ध योग से वह कन्या विधवा हो गई !
पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए वह कन्या अपने पिता के घर आकर समय व्यतीत करने लगी !उत्तंग ब्राहमण इस दुःख से दुखी हो अपने पुत्र को घर पर छोड़,
अपने पत्नी तथा पुत्री के साथ गंगा जी के तट पर जाकर निवास करने लगा ! वहां जाकर अपने शिष्यों को वेद और अध्ययन कराने लगा !
एक दिन वह लड़की अपने पिता की सेवा करते २ थक गई और तब वह एक पत्थर पर जाकर सो गई !
शयन करते ही उसके शरीर में कीड़े लग गए और सारा शरीर कृमिमय हो गया !
गुरु पुत्री की ऐसी दशा देखकर एक शिष्य बहुत ही दुखी होकर गुरु पत्नी के पास जाकर निवेदन कर कहा – हे माते – हम कुछ नहीं जानते आपके उस सत चरित्र वाली आपकी पुत्री को क्या हो गया हैं !
उनकी ऐसी दशा क्यों कर हो गई हैं ? आज उनका शरीर दिखाई नहीं देता ! मात्र कृमिया ही कृमिया दिखाई दे रही हैं !
माँ को ये वचन वज्राघात से लगे ! माँ तुरंत अपनी पुत्री के समीप गई, पुत्री की ऐसी अवस्था को देख कर विलाप करने लगी !
छाती पर हाथ पीटती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी और मूर्क्षित हो गई ! कुछ देर बाद होश आया तो, अपनी पुत्री को आँचल से पोछती हुई,
अपने कंधे का सहारा देती हुई उसके पिता के पास ले आई और बोली – हे स्वामी देखिये – यह अर्ध रात्रि का समय हैं और यह सो रही थी ! सोते समय इसके शरीर में कीड़े पड़ गए !
ब्राहमण समाधिस्थ हो उस लड़की के पूर्व जन्म के पापों को देखकर बोले – हे प्रिये यह पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी, उस जन्म में रजस्वला होकर भोजन आदि के पात्रों को स्पर्श आदि का विचार नहीं किया सभी को हाथ लगा दिया !
उसी पाप कर्मन के कारण इसका शरीर कीड़ों से ढक गया हैं!
रजस्वला के समय स्त्री पापिन होती हैं ! पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी, तीसरे दिन धोबिन, चौथे दिन शुद्ध होती हैं !
उसी जन्म में अपने सखियों के दुह्संग से ऋषि पंचमी व्रत को देखकर भी उसका अपमान कर दिया था !
दर्शन के प्रभाव वश इसे पुनः ब्राहमण कुल में जन्म मिला हैं ! सुशीला ने कहा हे स्वामी ऐसे प्रभावी व्रत को हमें भी बताइए, जिसके करने से महान पुन्य की प्राप्ति होती हैं !
ऋषि ब्राहमण ने कहा – देवी ध्यान लगाकर सुने – यह व्रत तीनों प्रकार के पापों का नाश करने वाला हैं, स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाला हैं
और धन समपत्त प्रदान करने वाला हैं, इस व्रत में संदेह नहीं करना चाहिए !
देवी भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी को किसी जलाशय में जाकर अपामार्ग का दातून कर मिटटी के लेप से स्नान कर व्रत (Rishi panchami vrat katha) नियम को धारण करना चाहिए !
ततपश्चात् सप्त् ऋषियों का शास्त्रोक्त पद्धति के आधार पर पूजन करना चाहिए !
ऋषियों को सुन्दर अधोवस्त्र, यज्ञोपवीत, उपवस्त्र, से अलंकृत करना चाहिए ! अच्छे २ फल नैवेद्य लेकर इनके साथ अर्ध्यदान करना चाहिए !
उस समय सप्त ऋषियों१ – कश्यपाय नमः२ – अत्रये नमः३ – भारद्वाजाय नमः४ – विश्वामित्राय नमः५ – गौतमाय नमः६ – जम्दग्नये नमः७ – वाशिष्ठाये नमःको नमस्कार कर अर्ध्य दान कर बोले – हे ऋषि गण कृपया मेरा अर्ध्य दान स्वीकार करे ! और प्रसन्न हो !
अंत में अरुन्धत्ये नमः करके पूजन संपन्न करना चाहिए ! इस व्रत में शाग का भोजन करना चाहिए ! सभी तीर्थो में स्नान आदि से जो फल प्राप्त होता हैं
वह सभी इस एक मात्र व्रत के प्रभाव से मिल जाते हैं ! जो इस व्रत को करते हैं वे सुख सम्पनं , रूप गुण संपन्न , पूर्ण काया से युक्त , एवं पुत्र पुत्रादि आदि गुणों से भी सदा ही सम्पन्न रहते हैं !
इस लोक के सभी भोगो को भोग कर परलोक में बैकुंठ की प्राप्ति होती हैं !
ब्रम्हाण्ड पुराण से ली गई ऋषि पंचमी कथा के अनुसार सत्य युग में श्येनजित नामक एक राजा राज्य करता था !
उसके राज्य में सुमित्र नामका एक ब्राह्मण रहा करता था ! वह वेदों में पारंगत था ! वह ब्राहमण खेती द्वारा जीवन निर्वाह व् परिवार का भरण – पोषण करता था !
उसकी पत्नी जयश्री सटी साध्वी थी, वह खेती के कार्यों में भी अपने पति का सहयोग करती थी ! एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उसने घर का सब कार्य किया और पति का स्पर्श भी कर लिया ! देवयोग से पति तथा पत्नी का शरीर अंत एक साथ हो गया !
रजस्वला अवस्था में स्पर्श आदि का विचार न करने से स्त्री कुतिया और पति ने बैल की योनि प्राप्त की !
परन्तु पूर्व जन्म में किये गए धार्मिक कर्मों के कारण पूर्व जन्म की स्मृति उन्हें बनी रही ! संयोग वश इस जन्म में भी अपने ही घर में साथ २ अपने पुत्र और पुत्र वधू के साथ रह रहे थे !
ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था, वह भी पिता की भांति वेदों का विद्वान था ! पितृपक्ष में उसने अपने माता – पिता के श्राद्ध के उद्द्देश्य से पत्नी से कहकर खीर बनवाई और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया !
उधर एक सर्प ने आकर उस खीर को विषाक्त कर दिया ! कुतिया बनी ब्राह्मणी सब देख रही थी,
उसने सोचा यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो मर जायेंगे और सुमति को पाप लगेगा !
ऐसा विचार कर सुमति की पत्नी बहुत क्रोधित हुई और चूल्हे से जलती हुई लकड़ी निकाल कर उसकी पिटाई कर दी !
बैल ने कहा आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया, जबकि सारे दिन मुझसे खेतों पर काम लिया !सुमति हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध कर रहा हैं,
और हमें ही भूखों मार रहा हैं, इस तरह से हम लोगों के भूखे रह जाने से तो इनका श्राद्ध करना व्यर्थ हो जाएगा !
सुमति द्वार पर बैठा इन दोनों की वार्तालाप सुन रहा था , उसे पशुओं की बोली भली भांति आती थी ! उसने जब ये बातें सुनी तो उसे बहुत दुःख हुआ,
कि मेरे माता पिता इस निष्कृष्ट योनि में जन्मे हैं! वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के पास पहुंचा और सारा वृतान्त सुना कर अपने मत पिता के इस योनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा !
ऋषि ने सुमति से खा तुम भाद्र शुक्ल पंचमी का व्रत करो ,
उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता – पिता को अवश्य मुक्ति मिल जायेगी ! मात पिता भक्त सुमति ने ऋषि पंचमी का व्रत किया !
जिसके प्रभाव से उसके माता पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गई !
यह व्रत शरीर के अशुद्ध अवस्था में किये गए स्पर्शास्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता हैं !
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