मंगल को वैवाहिक जीवन के लिए अमंगलकारी माना जाता है( Mangala Gauri Vrat Katha)
क्योंकि कुण्डली में मंगल की विशेष स्थिति के कारण ही मंगलिक योग बनता है
जो दांपत्य जीवन में कलह और विभिन्न समस्याओं का कारण बनता है।
मंगल की शांति के लिए मंगलवार का व्रत और हनुमान जी की पूजा को उत्तम माना जाता है।
लेकिन अन्य दिनों की अपेक्षा सावन मास के मंगल का विशेष महत्व है। शास्त्रों में खास तौर पर स्त्रियों के लिए सावन मास के मंगल को सौभाग्य दायक बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार जो नवविवाहित स्त्रियां सावन मास में मंगलवार के दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती हैं
उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त होता हैं।
आज यही शुभ व्रत है। इस व्रत से दोष की शांति कर सकते हैं और दांपत्य जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।
इस व्रत के विषय में कथा है कि एक सेठ का कोई पुत्र नहीं था।
इस वजह से सेठ और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे। जिसके चलते सेठ ने कई जप-तप, ध्यान और अनुष्ठान किए,
जिससे देवी प्रसन्न हुईं। देवी ने सेठ से मनचाहा वर मांगने को कहा, तब सेठ ने कहा कि मां मैं सर्वसुखी और धनधान्य से समर्थ हूं,
परंतु मैं संतानसुख से वंचित हूं मैं आपसे वंश चलाने के लिए एक पुत्र का वरदान मांगता हूं।
देवी ने कहा सेठ तुमने यह बहुत दुर्लभ वरदान मांगा है, पर तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वरदान तो दे देती हूं
लेकिन तुम्हारा पुत्र केवल 16 साल तक ही जीवित रहेगा।
यह बात सुनकर सेठ और सेठानी काफी दुखी हुए लेकिन उन्होंने वरदान स्वीकार कर लिया।
समय बीतता गया और सेठ-सेठानी को पुत्र की मृत्यु की चिंता सताने लगी।
तब किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि यदि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करा दे जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो।
इसके फलस्वरूप कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके वर को दीर्घायु प्राप्त होगी।
संयोग से उसकी शादी एक ऐसी कन्या से हुई जिसकी मां मंगला गौरी का व्रत करती थी।
इस व्रत के प्रभाव के कारण उत्पन्न कन्या के जीवन में वैधव्य का दुःख आ नहीं सकता था।
इससे सेठ के पुत्र की अकाल मृत्यु टल गयी और वह दीर्घायु हो गया।
इस व्रत की विधि के विषय में बताया गया है कि
व्रत करने वाले को माता मंगला गौरी की प्रतिमा को सामने रखकर संकल्प करना चाहिए
कि वह संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी का व्रत रख रही है।
व्रती को एक आटे का दीपक बनाकर उसमें सोलह बातियां जलानी चाहिए
इसके बाद सोलह लड्डू,सोलह फल,सोलह पान,सोलह लवंग और ईलायची के साथ सुहाग की सामग्री माता के सामने रखकर उनकी पूजा करें।
पूजा के बाद लड्डू सासु मां को दें और शेष सामग्री किसी ब्राह्मण को दें।
अगले दिन मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर दें।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस व्रत से मंगलिक योग का कुप्रभाव भी काम होता है।
पुरूषों को इस दिन मंगलवार का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
इससे उनकी कुण्डली में मौजूद मंगल का अशुभ प्रभाव कम होता है और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
Purnima Vrat Katha -पूर्णिमा व्रत कथा
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