श्री महालक्ष्मी व्रत विधि – Mahalaxmi Vrat Katha
सबसे पहले प्रात:काल में स्नान आदि कार्यो से निवृ्त होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है.
व्रत का संकल्प लेते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
करिष्यSहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।
अर्थात हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगा.
आपकी कृ्पा से यह व्रत बिना विध्नों के पर्रिपूर्ण हों, ऎसी कृ्पा करें.
यह कहकर अपने हाथ की कलाई में बना हुआ डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों, बाध लेना चाहिए.
प्रतिदिन आश्चिन मास की क्रिशंपक्ष की अष्टमी तक यह व्रत किया जाता है. और पूजा की जाती है.
व्रत पूरा हो जाने पर वस्त्र से एक मंडप बनाया जाता है. उसमें लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखी जाती है.
श्री लक्ष्मी को पंचामृ्त से स्नान कराया जाता है. और फिर उसका सोलह प्रकार से पूजन किया जाता है.
इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक को ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. और दान- दक्षिणा दी जाती है.
पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है.
नये सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखा जाता है. इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा ।व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा ।।
अर्थात क्षीर सागर से प्रकट हुई लक्ष्मी जी, चन्दमा की सहोदर, श्री विष्णु वल्लभा, महालक्ष्मी इस व्रत से संतुष्ट हो.
इसके बाद चार ब्राह्माण और 16 ब्राह्माणियों को भोजन करना चाहिए. इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है.
16वें दिन इस व्रत का उद्धयापन किया जाता है.
जो व्यक्ति किसी कारण से इस व्रत को 16 दिनों तक न कर पायें, वह 3 दिन तक भी इस व्रत को कर सकता है.
व्रत के तीन दोनों में प्रथम दिन, व्रत का आंठवा दिन व व्रत के 16वें दिन का प्रयोग किया जा सकता है.
इस व्रत को लगातार 16 वर्षों तक करने से विशेष शुभ फल प्राप्त होते है.
इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. केवल फल, दूध, मिठाई का सेवन किया जा सकता है.
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्माण रहता था.
वह ब्राह्माण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था.
उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़.
और ब्राह्माण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा,
ब्राह्माण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की.
यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्माण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है,
जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना. वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है.
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बार तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा.
यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये.
अगले दिन वह सुबह चार बचए ही वह मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं,
तो ब्राह्माण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया.
ब्राह्माण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है.
लक्ष्मी जी ने ब्राह्माण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो,
16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा.
ब्राह्माण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा,
लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया.
उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है. जय माँ महालक्ष्मी
Mahalaxmi Vrat Katha
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी मातातुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवतहर विष्णु विधाता .ॐ जय लक्ष्मी माता ..
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माताओ मैया तुम ही जग माता .सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाताॐ जय लक्ष्मी माता ..
दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाताओ मैया सुख सम्पति दाता .जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाताॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाताओ मैया तुम ही शुभ दाता .कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाताॐ जय लक्ष्मी माता ..
जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आताओ मैया सब सद्गुण आता .सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराताॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाताओ मैया वस्त्र न कोई पाता .खान पान का वैभव, सब तुम से आताॐ जय लक्ष्मी माता ..
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाताओ मैया क्षीरोदधि जाता .रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाताॐ जय लक्ष्मी माता ..
महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाताओ मैया जो कोई जन गाता .उर आनंद समाता, पाप उतर जाताॐ जय लक्ष्मी माता ..
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