गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja Katha) में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है. शास्त्रों में बताया गया है
कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा. गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है.
देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार ग माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं.
इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है. इस तरह ग सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है.
गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है।
इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा का भी विधान है।
देश विदेश से लोग इस दिन गोवर्घन पर्वत की पजा के लिए आते हैं।
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है. कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था.
इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं
ने एक लीला रची. प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं
और किसी पूजा की तैयारी में जुटे. श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया
” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं”
कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं.
मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं
भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं,
इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं
अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए.
लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की.
देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी.
प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है.
तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया
और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया.
इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी.
इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा ,
कि आप पर्वत के पर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें.
इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता
अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया.
ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं
ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा.
आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें.
इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया.
इस पराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी. बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं.
गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है.
गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.
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