आसमाई व्रत का महात्मय – Asmai ki vrat katha आसमाई के विषय में मान्यता है कि इनकी प्रसन्नता से जीवन की हर आशा पूरी होती है
और अगर ये अप्रसन्न हो जाएं तो जीवन की सभी खुशियां व सुख नष्ट हो जाते हैं।
इनकी प्रसन्नता के लिए महिलाएं विशेषकर पुत्रवती महिलाएं इनका व्रत रखती हैं.
वैशाख, आषाढ, तथा माघ के महीने में किसी रविवार के दिन आसमाई की पूजा और व्रत रखा जाता है (Vaisakh, Asadh or Magha).
एक राजकुमार था जो माता पिता के लाड़ प्यार के कारण बहुत अधिक शरारती हो गया था।
वह नगर की कन्याओं की मटकी को गुलेल से फोड़ देता था.
नगरवासियों की शिकायत सुनकर एक दिन राजा को बहुत क्रोध आया और उन्होंने राजकुमार को देश निकाला दे दिया.
राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर चला जा रहा था. जब एक वन में पहुंचा,
तो उसने देखा कि तीन वृद्ध महिलाएं अपने अपने हाथों में गगड़ी लिये चली आ रही है.
जब राजकुमार उन वृद्ध महिलाओं के समीप पहुंचा तब उसके हाथ से चाबुक छूट गयी और नीचे गिर पड़ी.
कुमार उस चाबुक को उठाने के लिए झुका तो महिलओं को लगा कि राजकुमार उन्हें प्रणाम कर रहा है. इस पर उन्होंने पूछा कि तुम हम तीनों में किसे प्रणाम कर रहे हो.
राजकुमार ने तब तीसरी महिला की ओर संकेत किया. वह महिला देवी आशा माई थी.
आशा माई राजकुमार पर प्रसन्न हुई और बोली ये तीन अनमोल रत्न तुम सदा अपने पास रखना,
जब तक यह रत्न तुम्हारे पास है तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकता।
आशा माई से विदा लेकर राजकुमार एक नगर में पहुंचा जहां का राजा चसर खेलने में बहुत ही निपुण था.
राजकुमार ने उस राजा को पराजित करके उसका सारा राजपाट जीत लिया।
पराजित राजा ने राजकुमार की कुशलता को देखते हुए उससे अपनी पुत्री की शादी कर दी.
कुछ दिनों के बाद राजकुमार अपनी पत्नी की इच्छा को देखते हुए अपने पिता और माता से मिलने चल दिया।
वहां उसके माता पिता पुत्र के विक्षोह से दु:खी होकर अंधे हो गये थे.
आशा माई के कृपा से वे भी भले चंगे हो गये और परिवार की खुशहाली एवं सुख शांति लट आयी.
यही है आशापूर्णी आस माई की कथा.
इस व्रत के दिन महिलाएं पान के पत्ते पर गोपी चंदन अथवा श्रीखंड चंदन से पुतली बनाती है। इस पर चार कड़ियां स्थापित करती हैं।
महिलाएं सुन्दर अल्पना बनाकर उस पर कलश बैठाती हैं।
इस व्रत का पालन करने वाल महिलाएं गोटियों वाला मांगलिक सूत्र पहन कर आस माई को भोग लगाती हैं
तथा अन्य महिलाओं को भेट भी करती हैं। इस व्रत में व्रती मीठा भोजन करती है
क्योंकि इस व्रत में नमक खाना वर्जित है.इस व्रत में कड़ियों की पूजा एवं मटकी स्थापित करने का विधान इसलिए है
क्योंकि राजकुमार को मटकियों को फोड़ने के कारण देश निकाला मिला था और कड़ियों से ही वह चसर में राज्य जीत सका था.
मान्यता है कि जो इस व्रत का पालन करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति की सभी आशा पूरी होती है.
आप भी आशा की पूर्ति की चाहत रखती हैं तो देवी आस माई का व्रत रख सकती हैं.
Nirjala Ekadashi Vrat Katha – निर्जला एकादशी व्रत कथा
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